...

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मुझे इक हुस्न-ए-जाना से प्यार हों गया...
जाने कैसी वो रात थी, कैसा वो समा था,
जब इक रोज़ हमें, दीदार-ए-यार हों गया !

ना लब खुलें, ना उनसे कोई बात हुईं,
बस नज़रों-नज़रों में, प्यार हों गया !

निगाहें मिली जो, उनकी निगाहों से,
आँखों-आँखों में ही, इक़रार हों...