...

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उम्मीद
हर रोज ये कहानी दोहराते हैं
एक दिन जरूरत होगी फिर मेरी उसे,
बस यही सोच के ज़िंदगी को सांसों की लत लगा देते हैं,
जिस्म राख का ढेर अंदर ही अंदर बटोर लेता है,
आज ना सही वो दिन बस यही सोच कर
हर रात हजारों ख़्वाब जला देते हैं...

धुंध सी यादें कोहरे से जज़्बात तेरे होने का
अकसर ज़िंदगी को ओझल किए रहते हैं,
जिस्म उठाए बीते कल के किस्सों का बस्ता
रूह को कैद कर सांस भरा करता हैं,

नज़र आए जो हम भूले बिसरे ज़िंदगी के मोड़ पर
दो वक्त ठहर देख लेना मेरी आंखों में,
बरसों से ख़ामोश बेचैन
इन आंखों को दो वक्त का सुकून होगा,
हर रोज ये कहानी दोहराते है,
खुद की रूह में बस तुम्हे पाते है,
रूह सुकून से गुज़र जाएगी हर बंदिश तोड़ के
जब भी ज़िंदगी तुम्हें मेरे बिना भी खुश दिखाएगी...

© khanabadosh_2207