एक दफा........ आलम रुक्सती का
एक दफा
आप खफा,
रुसवा होकर आपसे
रुक्सती से
हम रुक्सत हुए
एक दफा
गर ताल्लुकात हुए भी
अल्लाह की नेमत मै, एक दफा
थें दुआओ मै
मेरे हमदर्द
बनकर,
हर दफा.....
जिक्रनामा मै
तेरा ही जिक्र रहता
अक्सर
अक्स तेरा
दिखाता, आइना
रूबरू हुए हम ज़ब
एक दफा
फूलों की महक के मेहमान
होते
एक दफा
आने से...
आप खफा,
रुसवा होकर आपसे
रुक्सती से
हम रुक्सत हुए
एक दफा
गर ताल्लुकात हुए भी
अल्लाह की नेमत मै, एक दफा
थें दुआओ मै
मेरे हमदर्द
बनकर,
हर दफा.....
जिक्रनामा मै
तेरा ही जिक्र रहता
अक्सर
अक्स तेरा
दिखाता, आइना
रूबरू हुए हम ज़ब
एक दफा
फूलों की महक के मेहमान
होते
एक दफा
आने से...