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स्वाभिमान
मै सूर्यवंश का अनुगामी, वंदन कैसे कर सकता हूँ?
कठिन सत्य से रिश्ता गहरा, बंदी कैसे बन सकता हूँ?
धरा की गोदी सुहाती मुझको, उन्मुक्त गगन का राही हूँ,
चाल चलूं बिना रोक टोक, मैं धारागत प्रवाही हूँ।
शयन किया रेतों पर मैने, मां की लोरी का ज्ञान नहीं।
मैं हिन्द देश का वासी हूं, कोई कठपुतला इंसान नहीं।

धानी रंग की चुनर नहीं, मोहे लाल दुशाला भाती है।
मन अंगड़ाई लेती है, जब केसरिया लहराती है।
बांसी की धुन नहीं मुझे है, प्रेम तीरों के कौशल से।
माता के सिरमौर बंधे, रण बीच बिछे हर चौसर से।
बलिदानी का पाठ पढ़ा मै, बचकानी का भान नहीं।
मैं हिन्द देश का वासी हूं, कोई कठपुतला इंसान नहीं।

कोई डाले बेड़ियाँ माता को, धमनी मे लहू चढ़ जाता है।
तार-तार करता यश को, तत्क्षण भृकुटी तन जाता है।
पैनी धार चले जब कोई, अरि आंख जो दिखलाए।
देता मुंहतोड़ जवाब उसे, कोई लाल वीर तब डट जाए।
माता की शान बनी रहे, निज गौरव का गुमान नहीं।
मैं हिन्द देश का वासी हूं, कोई कठपुतला इंसान नहीं।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey