...

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“मेरे इख्तियार में नहीं, उम्र-ए-दरज की समझ"
जो तू रखता है अपने चेहरे पर हंसी,
कितने ही वो लोग हैं, जो जान गवा बैठे,,

मेरे इख्तियार में नहीं, उम्र-ए-दरज की समझ,
हमने तुझको देखा और खुद को गवा बैठे,,

कशमकश से गिला ही क्यूं, मायूसी का खोट क्या हो,
एक चैन की खातिर यूं ना हो, खुशियों का गला दबा बैठे,,

दो पहलू में उलझजाने से, नींद बिछड़ जाने से,
मेरे सामने तो कुछ बोलते नहीं, और दिल में हमें बिठा बैठे,,

हमारे सामने से तुम यूं निकलो, फिर ऐसा हो कि कैसा हो,
जुबां है जो वो साथ न दे, दांतों से उंगली चबा बैठे.....।।।
© #Kapilsaini