...

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फ़िर मौत को कामयाब देखूँ
ज़िन्दगी का सफ़र अब सुक़ूँ से मुमकिन कहाँ
कि हर मोड़ पे तुमसे बिछड़ने का अज़ाब देखूँ

कि हर तरफ़ बिखरे पड़े हैं तुम्हारी जुदाई के काँटे
बड़ी आरज़ू थी की राहों में इश्क़ के ढेरों ग़ुलाब देखूँ

तेरे हाथों की लकीरें फ़क़त मामूली लकीरें नहीं यार
कि इन लकीरों में मैं अपनी ज़िन्दगी की किताब देखूँ

जो देखे थे‌ कभी हमने साथ जाग कर के रातों में
अब हिम्मत नहीं कि मैं दोबारा वो सारे ख़्वाब देखूँ

मैं अपनी लाश देख कर भी मुत्मइन कहाँ यार
तुम आके दफ़नाओ तो इस मौत को कामयाब देखूँ