डगर
खोकर यह पहचान स्वयं की
चलती राहे निहार पथ मंजरी
कभी लिपटती धुंध अहम् की
कही छेड़ती तपिश वक्त की
स्वाध्याय की थाम लकुटिया
बढ़ती फिर भी मगन बंवरिया
दिखावटी भी शक्ले कितनी
अख्तियार करता यह मधुबन ...
चलती राहे निहार पथ मंजरी
कभी लिपटती धुंध अहम् की
कही छेड़ती तपिश वक्त की
स्वाध्याय की थाम लकुटिया
बढ़ती फिर भी मगन बंवरिया
दिखावटी भी शक्ले कितनी
अख्तियार करता यह मधुबन ...