subha....
कुछ सुबहें
बीती शामों की शक्ल लेकर आती हैं
बिल्कुल हूबहू ,घंटों का फ़ासला होता है
मगर... रंगों का फैलाव वही, छटा वही..
पक्षियों का कलरव भी वही
मगर .....फ़र्क़ होता है दोनों में
एक बीते दिन के अस्त होने का प्रतिबिम्ब
तो दूसरा नयीं आशाओं के उदय का पर्व...!!
बीती शामों की शक्ल लेकर आती हैं
बिल्कुल हूबहू ,घंटों का फ़ासला होता है
मगर... रंगों का फैलाव वही, छटा वही..
पक्षियों का कलरव भी वही
मगर .....फ़र्क़ होता है दोनों में
एक बीते दिन के अस्त होने का प्रतिबिम्ब
तो दूसरा नयीं आशाओं के उदय का पर्व...!!