...

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मेरी अभिलाषा
खुद से खुद के लिए एक घर बनाना चाहती हूं
एक घर बनाना चाहती हूं ऐसा
जहां कोई कह ना सके फिर ऐसा
तुम तो पराई हो,यहां क्या लेने आई हो?
यह घर है मेरा, तुम तो यहां पर आई हो
मन यह मेरा पूछता सवाल है
जहां जन्मों का रिश्ता नहीं
वही कोई क्यू नही वास्ता
फिर कैसे दूसरों के आशियाने
में घर बनाऊंगी
क्या मजाल मेरी कि उस घर को भी
अपना कह पाऊंगी
तेरा मेरा के भंवर में वहां भी फंस जाऊंगी
दुनिया में कौन आसानी से किसी
का हक देता है
अपने हक के लिए ही अपनो से
लड़ना होता है
कांटो भरी राहों पर अकेले ही
चलना होता है,
एक घर से दूसरे घर ब्याह के नाम पर शिफ्ट कर दी जाती हूं,
जहां ब्याही गई क्या वहां भी
अधिकारी बन पाती हूं?
हे प्रभु अब तुम ही बताओ हमारा
कहां आसरा है?
जहां मे तो सबने मेरा तेरा कह कर
फैसला कर डाला है
तब जाकर मैंने खुद को इस विषम परिस्थितियों से बाहर निकाला है
और खुद का एक घर बनाने का निश्चय स्वयं ही कर डाला है।
माधुरी राठौर ✍️