...

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आबो-हवा
शहर की आबो-हवा में खास क्या लगा,
जो मुस्काराकर गाँव की दहलीज छोड़ दी |

झोपड़ी के मालिकों , हवेलियों में क्या?
झूठी शौकत के लिये जो राह मोड़ दी |

रंगतों में है सुकून, खुशी के वास्ते
लकड़ियों की बनी हुई चौपाल तोड़ दी |
----भूपेन्द्र नागर "अमव"