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गलती विधाता की.....
जाने क्या विधाता के मन में आ समाया था
जो ऐसा अजब सा खेल ही रच डाला था
यूँ तो पड़ा था सारा जहान पलके बिछाये हुए
फिर भी सहरा को नसीब बना डाला था
दी फितरत आसमाँ को भी भेद देने की
और फिर सैयाद को रहबर बना डाला था
खिलखिलाते थे मंजर भी जिसके होने से
उसके नसीब में मायूसी को लिख डाला था
इंद्रधनुष भी मांगते थे जिससे रंग उधार
उसके हर एक रंग का रंग ही छीन डाला था
सोच कर पछतावा तो उसे भी होता होगा जरूर
क्या लिखना था नसीब में और क्या लिख डाला था
© * नैna *
जो ऐसा अजब सा खेल ही रच डाला था
यूँ तो पड़ा था सारा जहान पलके बिछाये हुए
फिर भी सहरा को नसीब बना डाला था
दी फितरत आसमाँ को भी भेद देने की
और फिर सैयाद को रहबर बना डाला था
खिलखिलाते थे मंजर भी जिसके होने से
उसके नसीब में मायूसी को लिख डाला था
इंद्रधनुष भी मांगते थे जिससे रंग उधार
उसके हर एक रंग का रंग ही छीन डाला था
सोच कर पछतावा तो उसे भी होता होगा जरूर
क्या लिखना था नसीब में और क्या लिख डाला था
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