...

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दीवानगी
मुझमे शामिल मैं
मुझसे कभी वो मिला ही नहीं
हासिल थी जिसे मैं
उसने मुझे कभी जाना ही नहीं

किताब सी थी मेरी जिंदगी
जिसके लिये
मेरा कोई भी पन्ना
उसने कभी पढ़ा ही नहीं

कहता है वाकिफ था
वो शख्श मुझसे ,
मेरे वज़ूद से रूबरू
वो कभी हुआ ही नहीं

जर्रे जर्रे में थी जिसके लिए
मोहब्बत मेरी
उसके लिए मेरी दीवानगी
उसने कभी जानी ही नहीं




स्मृति.