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गुरु वही जो शिष्य बनने को आतुर है ।
शिष्य जितना शिष्य बना रहने को आतुर होता है, उतना ही गुरु होता चला जाता है, शिष्य बना रहता है और गुरु होने की प्रक्रिया अन्दर चलती रहती है, क्योंकि शिष्य का भाव व्यक्ति में ग्राहकता पैदा करता है, ग्रहण करने की शक्ति पैदा करता है, और परिणाम यह होता है कि ग्रहण करते -करते व्यक्ति में दृष्टि उपलब्ध हो जाती है, दर्शन उपलब्ध हो जाता है, जो जितना ग्रहण करेगा वो उतना ही देने के काबिल बन पायेगा । देने की शर्त यही है कि पहले पास में कुछ मौजूद हो तभी तो दे पायेगा, इसलिए शिष्य का भाव रखना बड़ी क्रांति की बात है क्योंकि जो व्यक्ति अभी तक तुम्हें शिष्य दिखाई पड़ रहा है वो का वो व्यक्ति गुरु हो जाता है ।
© 🌍Mr Strength