...

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मोहब्बत
कभी किसी मोड़ पे मुलाक़ात हुई अपनी,
हमसे नजरें मिला पाओगे तुम
दग़ा कर मुझसे मुझे जो ज़ख्म दिया,
उसे कभी क्या भर पाओगे तुम

रही क्या कमी मेरी मोहब्बत में,
कि तुम मेरी नही किसी और की हुई
क्या मेरे अंदर उठते इन सवालों का जबाब,
कभी मुझे दे पाओगी तुम

हसरत थी तुझे अपनी दुल्हन बनाने का
सिर आँखों पे अपने बिठाने का
क्या मेरे इन हसरतो को कभी पूरा कर पाओगी तुम

हंसते आँखों में आज आँसूओं का है शैलाब उमड़ा
क्या इन आँसुओं का भुगतान कभी कर पाओगी तुम