...

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जुबान
शब्दों से रहित एक वाणी बोली जाती है
शब्दों से नहीं प्रेम से समझी जाती है
विचारों को आदान प्रदान करने का
प्रत्येक जीव को भगवान ने दी अलग भाषा है
गईया ने सब को दूध पिलाया
प्रकृति ने जीवन आशय दिलाया
अश्व ने दुनिया दिखाई
श्वान ने ही गृह धन बचाया
जरुरत पर सब ने अपना कर्तव्य निभाया
कलयुग की है माया निराली
मानव भूला सरलता सारी
भूले संगी साथी सब
भूल गया उन त्यागें को
एक है नंदी भोले के संग
मूषक लाते गणेश को घर-घर
ऐरावत है इन्द्र के वाहन
जीवो के संग आते भगवन
दर्द दिया सब जीवो को
नंदी को तुम्ने मार दिया
गलत किया तुम लोगों ने
जीवन पर अत्याचार किया
काट दिया उन जंगलों को
जीवन का जिसने आश्य दिया
भूला दिया उस वाणी को
शब्दों से रहित जो माला थी
समझ न पाया उस वाणी को
प्रेम की जिसमें धारा थी
माना कि कुछ भूख में अंधे थे
पर सब की क्या गलती थी
भूल गया उस वाणी को
ईश्वर की जिसमे छाया थी
भूल गया उस वाणी को
भूल गया उस वाणी को....।
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