...

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सोचता हूं कि ऐसी भी रात गुज़ार लूं ।।
••••सोचता हूं कि एक ऐसी भी रात गुज़ार लूं•••••

सोचता हूं कि एक ऐसी भी रात गुज़ार लूं...
जहां ख्वाबों में इश्क़ और
गालों पे अश्क ना हों ...
नज़ारे हो लाख उस रात के
पर हमसे ज्यादा कोई रश्क ना हों ....

तारों से नज़्म सुनूं मैं
नींद से आंखे थोड़ी भी नम ना हो...
हाथों में शराब भी चलेगी यारों
पर उस रात दिल में किसिका गम ना हों..

हर रात यादों का कहर तो चलता ही हैं
पर उस रात !
चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान हों .....
रोज़ तो जीतेजी मरा हुआ होता हूं मैं
पर खुदा रहम करे उस रात
जिस्म में थोड़ी सी जान हों...

सोचता हूं कि एक ऐसी भी रात गुज़ार लूं...
जहां ख्वाबों में इश्क़ ना हों
और गालों पे अश्क ना हों ....
@kavyajit


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