...

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जी ले यारा दिन हैं चार (नज़्म)
जी ले यारा दिन हैं चार
कैसी नफ़रत कैसा प्यार
एक गया दिन दूजा आया
तिसरे दिन कुछ समझ न पाया
चौथे दिन है बेड़ा पार
जी ले यारा दिन हैं चार

कौन हमेशा क्या सोचेगा
रोज़ किसी को क्या रोकेगा
ये कह कर तुम रुक न जाना
ये टोकेगा वो टोकेगा
ये दुनिया की हाहाकार
जी ले यारा दिन हैं चार

सपने देखे, चुन न पाया
गीत लिखे थे, सुन न पाया
किसने सोचा था क्या होगा
जो चाहा था बन न पाया
मर जाने के सब आसार
जी ले यारा दिन हैं चार

कौन गिला करने आयेगा
कौन तुझे अब बहलाएगा
कैसी आदत डाल रखी है
बिन मारे ही मर जाएगा
ये उल्फत का है व्यापार
जी ले यारा दिन हैं चार

नींद से क्यूं बेदार हुआ है
क्या कहता है ,प्यार हुआ है?
पल दो पल की चाहत पर तू
क्यूं इतना बीमार हुआ है
ख़ुद को क्यूं करते बेकार
जी ले यारा दिन हैं चार

लेकिन, शायद क्यूं करता है
काश, अगर ,का दम भरता है
तेरे कह लेने से क्या है
वो होता जो,रब करता है
क्यूं रोना फिर बारम् बार
जी ले यारा दिन हैं चार

शाबान नाज़िर-

© SN