...

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वक़्त का सिलसिलेवार दस्तूर
ये ज़िंदगी है, एक सफर है छोटा,
हँसी है, ख़ुशी है, ग़म का भी कोटा।

खिलेंगे फूल, फिर होंगे मुरझाए,
ये धीरे धीरे वक़्त का है तकाज़ा।

एक दिन हम सबको यूँ ही चलना होगा,
पीछे छोड़ना ये सब, यूँ ही सो जाना होगा।

पर ये पल जो मिल रहे हैं, संजो लो इनको,
प्यार दो, हँसाओ, जी लो इन ख़ुशियों को।

रिश्तों को मज़बूत करो, सपनों को सजाओ,
यादों का दीप जलाओ, रौशनी फैलाओ।

क्योंकि जाना है ये सच, छिपा नहीं कोई भेद,
एक दिन हम सबको ये दुनिया छोड़कर जाना है, ये वक्त का सिलसिलेवार दस्तूर है,
लेकिन ज़िंदगी जी लो इस तरह से, के यादें रह जाएँ हमेशा के लिए, ये ज़िंदगी का असली मक़सद है ज़रूर।
© nishitgangwar
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