...

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इतना भी आसान कहां था ?
इतना भी आसान नहीं है
बिन तेरे भी खुश रह जाना
इतना भी आसान नहीं है
जानके सबकुछ चुप रहा जाना
कड़ावाह का सागर था वो
जिसको हमने मधुकर माना
इतना भी आसान नहीं है
खुद को खोकर साथ निभाना

इतना भी आसान कहां था ?
जो कुछ हमने कर डाला है
हृदय में उसके दावानल था
हाथो में विष की माला है
फिर नेह निभाने को
प्रेम फुहारे बरसाने को
मैं नित यतन करूंगा ही
तुझको जीवन देने की खातिर
मैं हर रोज मरूंगा ही
इतना भी आसान नहीं है
इतना भी आसान कहां था ?

© वियोगी (the writer)