...

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गौर फरमाए,
कि तुम्हारे बिना हम जीना सीख चुके है।
तुम्हे हम हार कर भी तुम्हे हम जीत चुके है।।
ना पाने की चाहत रही ना खोने का गम रहा।
हम बिरहा के बरसात मे बेइंतेहा भीग चुके है।।

माही..
हमने भी रिश्वत दे दिया अपने कलम को ।
हमे डर था कही ए मेरे सनम को बेवफा ना लिख दे।।

माही
आज सुन कर भी अनसुना की हो, कल सुनो गी तुम गैरों से।।
आज तोड़ दिया है लफ्ज़ो से , कल याद करोगी कलमो मे।।
माही ,
तुम एक उम्मीद देदो इंतजार का हा मै इंतजार करता रहूंगा।
तुम चाहे आज मिलो या वर्षो बाद मै इश्क़ करता रहूंगा।।

माही,
मेरे मौत के वक़्त उनका मेरे पास होना ज़रूरी होगा।
मेरे हर इश्क़ के फसाने मे उनका ज़िक्र होना ज़रूरी होगा।।

माही,
इतना लिखूंगा अपने सनम के बारे मे की इस कलम को भी मेरे शब्दों से इश्क़ हो जाए।
मै इतना हसीन लिखूंगा की उस हसीन को भी मेरे इश्क़ से इश्क़ हो जाये।।

© Chandan Singh