...

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और बहती मेरे में तू....
भगीरथ ने बहाई गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर।
और बेहति है मेरे में तू।

कहा से आती है तू पता नहीं जैसे सरस्वती का पता नहीं।

यूंही समंदर को पीछे छोड़ कर मेरे में यूं बहती रहती है।

ऐसा क्या पाती है तू मुझ में लेकिन मेरी प्यास भूजाती है तू।

तू किस दिव्यलोक की प्रेरणा है और क्यों मुझे...