...

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और बहती मेरे में तू....
भगीरथ ने बहाई गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर।
और बेहति है मेरे में तू।

कहा से आती है तू पता नहीं जैसे सरस्वती का पता नहीं।

यूंही समंदर को पीछे छोड़ कर मेरे में यूं बहती रहती है।

ऐसा क्या पाती है तू मुझ में लेकिन मेरी प्यास भूजाती है तू।

तू किस दिव्यलोक की प्रेरणा है और क्यों मुझे बहलाती है।

कठिनाइयो में अक्सर में तुझे मेरे पास पाती हूं जैसे कि तू मेरी मां ना हो।

ओ प्यारी कविता ओ मेरी कविता
कितनी तड़पन है तुझ में ऐसे क्यों उतर के आती है तू मेरे मस्तिष्क में।

क्या पिछले जन्मों में हम थे लंगोटी यार
की तू है मेरी अंतरात्मा की आवाज।

मां है, यार है कि आवाज है क्या है तू
ओ मेरी कविता गंगा से बिल्कुल कम नहीं तू।

मेरे में है तू और में हूं तुझ में
भले मैंने तुझे आकर दिया है
लेकिन मेरी मां ही है तू।




© prachirav