...

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सिकंदर
देखो तो जरा खुद को भी अब कम मयस्सर हूं मै,
दास्तां लंबी है मगर अफसाना बड़ा मुख्तसर हूं मै,

जो भिगाए दिल की ज़मीं को तर बतर होने तक,
ऐसी फैजआब बारिश की हमेशा मुन्तजिर हूं मै,

समाए है बड़े तूफ़ान भी अदब से अपने अंदर,
ठाथे मारता हुआ वफा का ख़ामोश समंदर हूं मैं,

भटक गया कभी राह ए रास्त से अगर चे जनाब,
रास्ते दिखाने वाला वो कमाल का रहबर हूं मै,

शाह को रुख़ में कश्त देते है हमेशा हम "नूर",
हारी बाज़ी जितने वाला नायाब सिकंदर हु मै!!
© Noor_313