...

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बन गया...
रास्तों की मिट्टी था उसका एक साथ मिला,
मुसाफिरों की मंज़िल बन गया...

बिखरा हुआ पड़ा था जो डाली से टूटा था,
उसकी बहारों में एक मज़बूत दरख्त बन गया...

तूफानों में बिछड़ी कश्ती किनारे की तलाश में था,
उसके हौंसला अफ़ज़ाई की मदद से लहरों का तैराक बन गया...

क़ाफिरी ​​कम्बल ओढ़े वक़्त गुज़ार रहा था,
उसकी रहनुमाई से मुक्म्मल नमाज़ी बन गया...

© Shabbir_diary

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