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है महाकाल ❤
तु भस्म रमावे जोगी सा
तु बीज है अलौकिकता का,
क्या कहूँ तेरे स्वभाव का
मैं कटपुटली तेरे खेलों का
तु ही दाता तु ही रुद्र
तु ही अंग आदि शक्ति का
गंगा बसे तेरी जटाओं में
चंद्रमा तुझ संग सुशोभित सा
शेषनाग तुझको सुहावे
नंदी प्रिय सवारी सा❤
इंद्रियों को करके वश में
बैठ बीच समाधि सा
आँखों को करके बंद
सुनता तु हर दिल के हाल सा
रुद्राक्ष धारण करता तु
तुझसे ही शुरू होता माहेश्वर सूत्र
तु पहने वस्त्र बाघ की खाल सा
घर तेरा कैलाश केहलावे
तु रखता ख्याल सबका बाप सा
तुझे प्रिये बेल पत्री और धतूरा
दुष्टों का करता विनाश तु बनकर
महाकाल सा❤
तु ही रचैता तु ही अंत
प्राणी जहाँ विलय करें तु
वहीं से शुरू होता आरंभ सा
-स्वाति विश्वकर्मा

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