...

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फूल की व्यथा
फूल अपनी डाली से जुड़े अपनी व्यथा सुनाते हैं,
क्यूँ अच्छे इंसान अब नज़र हमें ना आते है ॥

क्यूँ श्रीराम सा धीर मनुष्य अब ना पाते हैं,
क्यूँ कृष्ण की बाँसुरी सी ध्वनि हम ना सुन पाते हैं ॥

क्यूँ माँ सीता के चरणों में सीस लोग ना नवाते हैं
क्यूँ रावण सी प्रवृति और नीयत पा पापी बन जाते हैं

क्यूँ हमें यूँ तोड़ मोड़ सरे राह फेंक जाते हैं,
क्यूँ हमे इस डाली से अलग कर इतराते हैं ॥

क्यूँ ना अब इंसान में इंसानियत हम ना पाते हैं,
क्यूँ हर इक शख्स को नकाब में छिपा पाते हैं ॥