...

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काश.......
काश मा ने मुझे पचपन में ,
गिरना भी सिखाया होता
जितने के साथ हारना भी सिखाया होता।
तो ये डर ना ये
मेरे मन में बसता
सभी चले आराम से
कठिन लगे क्यों मेरा रस्ता
एक छोटे काम करने को
सौ - सौ बार सोचा करू मै
कहीं भूल हो गई तो,मजाक बन गया तो
फिर अंत मै ना करूंगी ,
यही निष्कर्ष धरा करू मै।
अजीब सी खाती है मुझे ये डर,
बात उठी बस मुझे करना है
निकले पसीने पाव करे थर थर।
समझ नहीं आता हिम्मत बलवान है या बलवान है ये डर
हर जगह रोका करे
कितना भी समझाऊं खुदको
हिम्मत ही अंत मै धोखा करे।
ये डर तो मुझे भागना ही होगा
हिम्मत बलवान है,
ये दिखाना ही होगा
सब करे तो मै क्यों बाद हूं
मुझे भी "मै कर सकती हूं"ये बताना होगा
भूल भूल से ठीक करूंगी ।
गिर के भी पाव चलाना होगा
आज गिरने से डर बैठी तो
कल कदम - कदम पे डगमगाऊंगी ।
डर का मै भी मजाक उड़ाकर
सर्व श्रेष्ठ कलाऊंगी.......