"माता-पिता"
"माँ"
अम्बर अम्बर बात चली है, एक चाँद मिला है अम्बर पर,
कहते उसका नाम है माँ, जो जा बैठी है दिनकर पर।
सारे नभ मंडल को उसने, घर जैसा कर डाला है,
मोती बनके बिखरे हैं सब चाँद-सितारे आंगन पर।
उसने सींचा है वसुधा की, हरियाली को आँचल से,
माँ गंगा जैसी लगती है आते हर एक सावन पर।
ममता, समता ,दया, धरम, नित नया करम सिखलाती है,
माँ जैसा न गुरु हुआ है गुरुओं के इस उपवन पर।
स्नेह, सनेह, सुघर वाणी और माँ ...
अम्बर अम्बर बात चली है, एक चाँद मिला है अम्बर पर,
कहते उसका नाम है माँ, जो जा बैठी है दिनकर पर।
सारे नभ मंडल को उसने, घर जैसा कर डाला है,
मोती बनके बिखरे हैं सब चाँद-सितारे आंगन पर।
उसने सींचा है वसुधा की, हरियाली को आँचल से,
माँ गंगा जैसी लगती है आते हर एक सावन पर।
ममता, समता ,दया, धरम, नित नया करम सिखलाती है,
माँ जैसा न गुरु हुआ है गुरुओं के इस उपवन पर।
स्नेह, सनेह, सुघर वाणी और माँ ...