अनंत सफर
जियो कुछ तुम इस कदर
मानो है ये कोई अनंत सफर
जिंदगी तो है बस चार दिन का मेला
ना है कोई और दूजा जमेला
इन चार दिनों में भी क्यूं पालना किसी से बैर
नहीं उगलना अपने मुंह से किसी के लिए भी जैर
आए हो अगर इस दुनिया में तुम
तो, या तो तैर कर उसे महेसूस कर लो
या डूब कर खुदको महेफूज कर लो
चाहो, तो आदित्य से तुम दोस्ती कर लो
या बिन दोस्त बनाए ही तुम खुद से ज्याख्ती कर लो
चाहो, तो भानू की वो पहेली किरण का
तुम...
मानो है ये कोई अनंत सफर
जिंदगी तो है बस चार दिन का मेला
ना है कोई और दूजा जमेला
इन चार दिनों में भी क्यूं पालना किसी से बैर
नहीं उगलना अपने मुंह से किसी के लिए भी जैर
आए हो अगर इस दुनिया में तुम
तो, या तो तैर कर उसे महेसूस कर लो
या डूब कर खुदको महेफूज कर लो
चाहो, तो आदित्य से तुम दोस्ती कर लो
या बिन दोस्त बनाए ही तुम खुद से ज्याख्ती कर लो
चाहो, तो भानू की वो पहेली किरण का
तुम...