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नर से भारी नारी
कविता- नर से भारी नारी

एक नहीं दो दो मात्राएं,नर से भारी नारी है
कोख तेरी तेरी परिभाषा,रूप तेरा जग जारी है
कहा गया क्यों अबला तुझको
रखा गया पर्दा पीछे,
घर आगन में जब तुम आई
मिला बधाई मन भींचे,
सृष्टि का आधार तुम्हीं है ,जगती का उजियारी है।
एक नहीं दो दो मात्राएं,नर से भारी नारी है।
कभी तु बेटी कभी बहू तू
कभी मां बन जाती सांस,
दिल में तू ममता की मूरति
मन में तू आस्था विश्वास
ना,अरि है तू कभी किसी का, नारी जग में न्यारी है।
कोख तेरी तेरी परिभाषा,रूप तेरा जग जारी है
सबला बन तू आज खड़ी है,
नेत्री से अधिकारी तू,
गांव से लेकर संसद तक
भर हुंकार ललकारी तू,
बदल दिया है कल की रूढ़ियां,पढ़ी लिखी अब नारी है।
एक नहीं दो दो मात्राएं,नर से भारी नारी है
नारी तू कमजोर नहीं न
हाथों की कठपुतली है,
तू स्वतंत्र आजाद परी अब
भर उड़ान तू निकली है,
बदल गयी अब दुनिया तेरी,तू सम्मान हमारी है।
एक नहीं दो दो मात्राएं,नर से भारी नारी है

रचनाकार -रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर

© Rambriksh Ambedkar Nagar