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#पुरानी_यादें #पुराना_घर
ओलु आवे, म्हनै म्हारै पुराणियां घर री
बै छोटा-छोटा ओरा, अर बा कच्चोड़ी रसोई
बो बारलो मेहमानां रौ कमरो, अर कच्चे-पाकै आंगनै री कोर
माटी रौ चूल्हों, अर घट्टी रो फेर
डोवे री राबड़ी रे सागै कांदो अर केर

दादा रो ओरो, बि पर लाग्योड़ौ तालौ
ऊपरी आलै में मेलयोड़ी बिरी कुंची
ताऊजी रो ओरो, जिको कम ही देख्योड़ो खुलो
मैल्योड़ो बिमे समान, जानै पीतल री चरयां री दुकान
बा पक्कोड़ी रसोई, जिमें काकीजी री अलमारी
ताईजी रौ बेड,लौह री जाली, खनै कदै घट्टी भी चलाई,
कच्चोड़ी टेणियां री रसोई, मीं-झड़ में बिमें ही रोटी बनाई
बै आंगनै रां छोटोरां आला, जिकैमें फंस-फंस र गायोड़ा गाना
ओलु आवै, बै सग्ली बातां, कोनी अब बै ठंडी-ठंडी रातां

आज-बी सागण जग्यां बणियोड़ा, पक्का-पक्का कमरा
बड़ा-बड़ा हॉल, पाकी चौक, हेर फूटरां बाण्डा
पण म्हनैं तो चौखो लागै, बो सीला आलौ ऊंचो मोड़ो
बो ही म्हारौं पेहला आलो, पुरानियों घर
बडोरी पक्योड़ी चौकी, पछै छोटोरी कच्चोड़ी चौकी,
हेर आगली खुली बड़ी...