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एक बेटे की चाह
एक था बच्चा, मन का सच्चा,
पढ़ने में ठीक ठाक, था अच्छा,

मम्मी पापा भी, पढ़े लिखें,
मगर अपनी ज़िन्दगी से, पूरे थके,

बनना कुछ था, बन कुछ और गयें,
अब वो दिन तो नहीं थें, वो दिन तो चले गए,

इसी दर्द को लिए, ज़िन्दगी जी रहे थें,
यही वो बात है, मम्मी पापा थक रहे थें,

दोनों ने सोचा, चलों जो हम न बन पायें,
क्यों न वो इच्छा, बेटे से पूरी करायी जाये,

मम्मी को डाक्टर, पापा को इंजीनियर बनना था,
दोनों ने निर्णय लिया, बेटे को क्या बनना था,

पापा ने बेटे से कहा, बेटा इंजीनियर बनना है,
मम्मी ने कहा, नहीं डाक्टर बनना है,

दोनों अपनी-अपनी, जिद पर अड़े थें,
ये देख बेटे के, कान खड़े थें,

बेटा परेशान हैरान सा, दोनों को देखे,
सोचा मम्मी पापा, पहले तो ऐसे नहीं थें,

क्या हो गया है, इन सभी पापा मम्मीयों को,
अपनी हार को, बच्चों की जीत में देखतें है,
शायद दादा-दादी नाना-नानी ने, अपनी हार इनसे पूरी कराई हो,
उनकों क्यों नहीं देखतें है,

यह देख बेटे के दिल ने, विद्रोह कर दिया,
मुझे कुछ नहीं बनना, ऐसा निर्णय कर लिया,

डाक्टर कहाँ के, कब के भले हैं,
हर मरीज को, लूटने पर तुले हैं,

उनका आला अब नहीं, देखता बिमारी,
हर समय लगती, दौलत उनकों प्यारी,

और इंजीनियर भी, कहाँ के भले हैं,
हर बुराई की तरह, वो भी बुरे हैं,

उनका पेट किसी, राक्षस से कम नहीं है,
रेत सीमेंट लोहा खाते हैं, रोटी के भूखे नहीं हैं,

कितने दुख और शर्म की, ये बात है,
है सच्ची पर, सौ की एक बात है,

हर माँ बाप के वश में है, अच्छे बच्चे को पाना,
लेकिन हर बच्चे के वश में नहीं, अच्छे माँ बाप को पाना,

बेटे ने कहा, मुझे नहीं बनना और न बनानी ऐसी पहचान,
मुझे तो बस बनना है, सिर्फ़ और सिर्फ़ एक अच्छा इंसान,

🙏🙏🙏
-अदंभ


© अदंभ

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