सुकून
क्या गम हैं,
जो छुपा रहें हैं,
कितने गम हैं,
जो सता रहें हैं।
इस बनावटी हँसी के पीछे राज क्या हैं,
जो हम चेहरें पर दिखा रहें हैं,
हालातों की बातें हैं जनाब,
कि हम खुश ना होकर भी,
खुद को खुश रहना सीखा रहें हैं।
उजियालों ने दामन का साथ,
कबका छोड़ दिया हैं,
अंधियारा हैं,
जिसने हाथ को थामें रखा हैं।
वक्त़ के दरवाजे़ पर ख़ुद का,
हिसाब लिए खड़ें हैं,
क्या सही, क्या गलत,
ये पता करने चलें हैं।
हरगिज़ हम अकेले हैं,
गुमनाम दुनिया में,
पर एक नाम,
एक पहचान बनाने निकले हैं जहां में।
खाली हाथ लौटें तो,
बंजर जमीं नसीब होंगी,
फिर क्या फ़र्क पड़ता हैं कि,
इस बंजर जमीं में काटों की खेती नसीब होंगी।
हम अब वो राहगीर हैं,
जो चलतें जा रहें हैं,
ना पता हमें कि कब हमें,
मंजिल मुनासिब होंगी,
शायद ख़ुदा की मर्जी़ रही तो,
हमारी ख़ुद से कभी मुलाकात जर्रुर होंगी।
और अगर ढूँढ पाये ख़ुद को कभी,
तो ए दिल तुझे सुकूँ की जन्नत महसूस होगी।
© shivika chaudhary
जो छुपा रहें हैं,
कितने गम हैं,
जो सता रहें हैं।
इस बनावटी हँसी के पीछे राज क्या हैं,
जो हम चेहरें पर दिखा रहें हैं,
हालातों की बातें हैं जनाब,
कि हम खुश ना होकर भी,
खुद को खुश रहना सीखा रहें हैं।
उजियालों ने दामन का साथ,
कबका छोड़ दिया हैं,
अंधियारा हैं,
जिसने हाथ को थामें रखा हैं।
वक्त़ के दरवाजे़ पर ख़ुद का,
हिसाब लिए खड़ें हैं,
क्या सही, क्या गलत,
ये पता करने चलें हैं।
हरगिज़ हम अकेले हैं,
गुमनाम दुनिया में,
पर एक नाम,
एक पहचान बनाने निकले हैं जहां में।
खाली हाथ लौटें तो,
बंजर जमीं नसीब होंगी,
फिर क्या फ़र्क पड़ता हैं कि,
इस बंजर जमीं में काटों की खेती नसीब होंगी।
हम अब वो राहगीर हैं,
जो चलतें जा रहें हैं,
ना पता हमें कि कब हमें,
मंजिल मुनासिब होंगी,
शायद ख़ुदा की मर्जी़ रही तो,
हमारी ख़ुद से कभी मुलाकात जर्रुर होंगी।
और अगर ढूँढ पाये ख़ुद को कभी,
तो ए दिल तुझे सुकूँ की जन्नत महसूस होगी।
© shivika chaudhary