...

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गाँव का कच्चा घर
अपने गाँव का कच्चा घर बेच आया,
पहचान का पुराना पत्थर बेच आया ।

घर नहीं बेशकीमती धरोहर बेच आया,
सात पीढ़ियों का खून पसीना बेच आया
अपने गाँव का कच्चा घर.....

कीमत तो कम थी, परंतु अनजाने में महल बेच
आया;
किसी से गिला - शिकवा कैसे करू,
मैं अपने हाथों से अपनी पहचान बेच आया ।
अपने गाँव का कच्चा घर.....

शहर की दुषित हवा पानी की खातिर,
मैं सदियों की यादों का गट्ठर बेच आया।
शहर की भीड़ की खातिर,
मैं सौंधा मिट्टी की खुशबू बेच आया।
अपने गांव का कच्चा घर.....

तरक्की की ख्वाहिशों का अंत कहाँ है;
उनके खातिर में सुकून का गट्ठर बेच आया ।
पन्नियों में दूध, सब्जियों में जहर, बोतलों में पानी,
इस नरक की खातिर में स्वर्ग बेच आया ।
अपने गाँव कच्चा घर....

मशवरा है जनाब, अपने गाँव का घर जरूर बनाये रखना,
वरना पछताओगे की अपने गाँव का कच्चा घर बेच आया ।
अपने गाँव कच्चा घर....
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