...

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लिखने को ज्यादा कुछ नहीं चाहिए
दिन एक,
पवन का वेग,
था इतना तेज़,
कहीं उड़ जाऊं न मैं।

उपल की सेज,
उमड़ती रेत,
बगल को खेत,
किधर मुड़ जाऊं हां मैं?।

एक ओर नवनिर्मित पुल,
अस्ताचल का किरदार निभाए।
एक ओर हैं तारिणी गंगे,
कल–कल करती बहती जाएं।
एक ओर भागती ज़िंदगी,
विविध गाड़ियां शोर मचाए।
एक ओर शालीन सुखद,
तंबू में जीवन हंसता जाए।
मध्य खड़ा मैं,
काल की अविरल धारा में बह जाऊं मैं।।

घूम फिर के,
चला मिल के,
न रोक प्रिए,
कहीं जुड़ जाऊं न मैं।

दिन एक,
पवन का वेग,
था इतना तेज़,
कहीं उड़ जाऊं न मैं।
कहीं उड़ जाऊं न मैं।।
🪷🪷🍁🪷🪷
–ध्रुव
© Dhruv