...

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"उलझन"
मन की उलझन मैं सुलझाऊं कैसे
हृदयं की पीड़ा किसे बताऊं कैसे!!

इतने विस्तृत धरा में पातीं हूं खुद को
एकान्त सी,स्वत:मन में जागृत हुई ये इच्छा

क्यो न समस्त कोप और दंश को मैं श्वेत
कागज़ों में ही लिख डालूं तमाम वेदना को

लिख कर कुछ अश्रु बहा लूं,हो सकता है
इससे शायद मन कुछ शांत हो,और जीवन
जीने की स्वत: इच्छा जागृत हो।


© Deepa🌿💙