...

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सही-गलत।
में जब भी अपनी कुछ बात कहता हूं,
तो में सुनाता हूँ हर बात पे,
कयोंकि में पुरुष जो हूँ,
तुम जब भी सुनाती हो,
तो तुम अपनी बात कहती हो,
क्योंकि तुम नारी जो हो,
मेरी बाते कड़वी हो जाती हैं,
तुम्हारी किसी और के लिए कड़वाहट,
मेरे लिए मात्र बातें बन कर रह जाती हैं,
में सुनता रहूं तुम सुनाती रहो,
में हाँ में हाँ भरता रहूं,
और तुम हर बार मुझे ही जताती रहो,
हर बात में फर्क तुम करती हो,
और शिकायत रहती है हमेशां तुम्हें दूसरों के फर्क से,
तुम्हारी अपनी बात आती है तो तुम कोमल होने का दावा करती हो,
और मेरी बात आती है तो में कठोर लगने लगता हूँ,
कठोर मुझें बताती हो और हर बात में कठोर तुम हो जाती हूँ,
हर समय खुद को झुकाने का उलाहना देती हो,
और मुझे झुकाने में कोई कसर नहीं छोड़ती हो,
में हर बात पे गलत हो जाता हूँ,
तुम हर बात पे सही हो जाती हो,
अकसर में झूठा हो जाता हूं,
और तुम सच्ची हो जाती हो,
कसूर तो मेरा ही निकलता है हर बार,
क्योंकि तुम तो कभी गलत हो ही नहीं सकती,
मेरी गलती तो में स्वीकार करता ही हूँ,
अक्सर तुम्हारी गलती में भी मेरी ही गलती निकलती,
कसूर तो बस इतना है कि बिना कोई मोल-भाव किये,
तुमसे इश्क़ कर बैठे,
खुद को पराया तुम्हें अपना समझ बैठे,
हो गयी गलती सजा तो अब भुगतनी है,
कभी झूठ कभी सच जिंदगी तो अब जीनी है।

© Adv. Dhanraj Roy kanwal