सही-गलत।
में जब भी अपनी कुछ बात कहता हूं,
तो में सुनाता हूँ हर बात पे,
कयोंकि में पुरुष जो हूँ,
तुम जब भी सुनाती हो,
तो तुम अपनी बात कहती हो,
क्योंकि तुम नारी जो हो,
मेरी बाते कड़वी हो जाती हैं,
तुम्हारी किसी और के लिए कड़वाहट,
मेरे लिए मात्र बातें बन कर रह जाती हैं,
में सुनता रहूं तुम सुनाती रहो,
में हाँ में हाँ भरता रहूं,
और तुम हर बार मुझे ही जताती रहो,
हर बात में फर्क तुम करती हो,
और शिकायत रहती है हमेशां तुम्हें दूसरों के फर्क से,
तुम्हारी अपनी बात...
तो में सुनाता हूँ हर बात पे,
कयोंकि में पुरुष जो हूँ,
तुम जब भी सुनाती हो,
तो तुम अपनी बात कहती हो,
क्योंकि तुम नारी जो हो,
मेरी बाते कड़वी हो जाती हैं,
तुम्हारी किसी और के लिए कड़वाहट,
मेरे लिए मात्र बातें बन कर रह जाती हैं,
में सुनता रहूं तुम सुनाती रहो,
में हाँ में हाँ भरता रहूं,
और तुम हर बार मुझे ही जताती रहो,
हर बात में फर्क तुम करती हो,
और शिकायत रहती है हमेशां तुम्हें दूसरों के फर्क से,
तुम्हारी अपनी बात...