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इश्क़ इबादत

इस दुनिया में किसका इश्क़ मुक़म्मल है साहब
अधूरी इश्क़ की दास्तान हीर-रांझा भी है साहब

गुज़रे ज़माने की वो दास्तान आज भी मुसलसल
चल रही , इश्क़ गुनाह ये जमाना कह रही है साहब

दो...