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इश्क़ इबादत
इस दुनिया में किसका इश्क़ मुक़म्मल है साहब
अधूरी इश्क़ की दास्तान हीर-रांझा भी है साहब
गुज़रे ज़माने की वो दास्तान आज भी मुसलसल
चल रही , इश्क़ गुनाह ये जमाना कह रही है साहब
दो मोहब्बत करने वाले को अक्सर जाति-पाति
धर्म- संप्रदाय के आड़े कुचला जाता है साहब
दुःखों के इस सैलाब में बार-बार वो सारी अधूरी
इश्क़ की दास्तान इतिहास में दफ़न हो रही है साहब
कब ये दुनिया समझेगी इश्क़ गुनाह नहीं
सच्ची मोहब्बत उस ख़ुदा की इबादत है साहब !!
@Squeen
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