दोस्त जो कि छूट गए।
काश मेरे हाथ में
लग जाती इक जादू की छड़ी,
घुमा कर जिस को यूं मैं
कुछ वर्ष पीछे जाती चली ।
थाम कर उन हाथ को
जो डगमगा कर छूट गए।
अपने इस हाल में
हो जाती मैं डट कर खड़ी।
आज मेरे दोस्त वह
जो हिंदू ,मुस्लिम हो गए।
अपना के एक नया रूप
नफरत की दुनिया में खो गए,
पकड़ के उनके हाथ को
हकीक़त में ले आती मैं,
इस उबड़ खाबड़ दुनिया में
जन्नत की सैर कराती मैं।
याद कर !
किस तरह से पीछे से छुप कर
तू मुझको रंग लगाती थी,
ईद के दिन मैं भी
डब्बे भर भर कर सेवईयां लाती थी।
तू और में जब कभी कभी
थोड़ा ज़्यादा शरारतें कर जाते थे
फिर या तो तेरे पापा या
कभी कभी...
लग जाती इक जादू की छड़ी,
घुमा कर जिस को यूं मैं
कुछ वर्ष पीछे जाती चली ।
थाम कर उन हाथ को
जो डगमगा कर छूट गए।
अपने इस हाल में
हो जाती मैं डट कर खड़ी।
आज मेरे दोस्त वह
जो हिंदू ,मुस्लिम हो गए।
अपना के एक नया रूप
नफरत की दुनिया में खो गए,
पकड़ के उनके हाथ को
हकीक़त में ले आती मैं,
इस उबड़ खाबड़ दुनिया में
जन्नत की सैर कराती मैं।
याद कर !
किस तरह से पीछे से छुप कर
तू मुझको रंग लगाती थी,
ईद के दिन मैं भी
डब्बे भर भर कर सेवईयां लाती थी।
तू और में जब कभी कभी
थोड़ा ज़्यादा शरारतें कर जाते थे
फिर या तो तेरे पापा या
कभी कभी...