...

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डर।
मैं गिरूंगा, और गिर के संभल जाऊंगा
मैं अगर थक भी गया, तो भी तुम्हारी तरह घर तो नाही जाऊंगा।

न जाने किन कश्मकश, और रास्तों से आया हु मैं निकल कर,
और तुम को डर हैं मैं कहीं खो तो नही जाऊंगा।

शाम आने पर, मैं सितारों और जगनुओ से कर लूंगा दोस्ती,
बड़ा खुदगर्ज हू, अंधेरों से तो हाथ नही मिलाऊंग।

आपका अंदाज हैं दोस्ती और मोहब्बत में रंजीशे रखना,
अब यारो के शहर से निकल कर भी, मैं खंजर नही छुपाऊंगा।

घर से निकलता हु रोज घर बचाने को,
अब अगर खाली हाथ रहा तो फिर घर भी नही जाऊंगा।

नींद ऐसी की ख्वाब बोहत अच्छे लगते हैं,
रोज ख्वाब तोड़कर, मैं खुद को नींद से जगाऊंगा।

एक दिन इशारा होगा, एक दिए को छुपाने का,
आंधियों का रुख करूंगा, मैं उस रोज उस दिए को नहीं बचाऊंगा।

© paperBoat

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