खुद को पहचान तूं...
कब तू यूंही अपमान सहेगी
कब तक तूं चुपचाप रहेगी
कब तूं अपनी रूह और जिस्म
को तार तार होने देगी
उठा तूं...
कब तक तूं चुपचाप रहेगी
कब तूं अपनी रूह और जिस्म
को तार तार होने देगी
उठा तूं...