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दहलीज या प्यार
प्यार से देखा,मेरी गलती थी जो आशिकी का भूत आ चड़ा । दहलीज को भी भूल गई, ना देखा कौन अंदर कौन बाहर खड़ा। ये भी भूल गई ये दहलीज नहीं लक्ष्मण रेखा हैं, जो लक्ष्मण ने मां सीता की रक्षा के लिए खींची थी, ध्यान आया तो पाया, हर वो लड़का रावण था, जो दहलीज से बाहर खड़ा। मन का हरण करेगा या तन का पता नहीं कहां ले जायेगा, अशोक वाटिका तो नहीं पक्का श्मशान पहुंचाएगा । रावण राक्षस होकर भी इंसानियत दिखा गया। मानव ने राक्षसता को भी नीचे दिखा दिया। हर कोई एक ही बात कहता है,। टाइम खराब आ गया। टाइम तो वो ही है,। कौनसा 24घंटो से 25 आ गया। फर्क सिर्फ इतना है, इंसान ही इंसानियत भुला गया।
© Jyoti Swami