...

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वक्त ...
मुर्दे के लिए तो कुछ वक्त निकालोगे न
गुलशनो से ही तो सजाना है ,
काफिरों की क़तार में शामिल होना है
तुम्हे ढोंग ही तो करना है,
वजूद को नजरंदाज कर
अब वजह में तंज़ जो कसना है
एक सफर ही तो तय करना है
उन आंसुओं से उसकी अर्थी जो भिगोनी है 
शिकायतों का डोर भी तो पैरों में कसोगे ही,
फ़िज़ूल के गुणों पे चर्चा भी तो जरूरी है ,
अब ढोंग कर ही लिया है
तो  थोड़ी देर रूक जाओ ...
रिश्तों का हिसाब भी तो करना है
आ ही गए हो तो अपना हिसाब मांगोगे ही
मुर्दे के लिए तो कुछ वक्त निकलो न ...
इसका भी हिसाब रखोगे ही ...

© HeerWrites