...

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रावण दहन पर एक मनन
चलो रावण का दहन करें
पर एक बार तो उस पर मनन करे...

था वह सारी सृष्टि का राजा...
नाम लंकेश लंका का राजा...
जिसे कई वेदों कई ग्रंथों का ज्ञान था...
हां लेकिन उसे थोड़ा अभिमान था...
लेकिन सबको लगता कि यह सब हासिल करना इतना आसान था...
यह सारे उसके वर्षों के तप परिणाम था...

महादेव का था वह परम भक्त...
स्वभाव से था वो थोड़ा सख्त...
सूर्पनखा की नाक जो लक्ष्मण ने काटी...
तब से था वह लक्ष्मण पर रुष्ठ...
जब बजरंग ने लंका में अपना रंग दिखा डाला...
जलती पूछ से सारी लंका को जो जला डाला...
रावण ने देखा अपने सम्मुख अपनी प्रजा को मरते हुए...
त्राहिमाम त्राहिमाम वह सुनता अपनी प्रजा को करते हुए...
एक एक करते देखा उसने अपने भाइयों को मरते हुवे...

बस मति तब मर गई उसकी जब उसने बुरा कर्म किया...
पत्थर पड़े थे किस्मत पर उसकी जो उसने सीता हरण किया...

भाप चुका था रावण युद्ध से पहले...
ये वनवासी विधि का विधाता है...
इसके बस दर्शन से जन भवसागर तर जाता है...
रावण था पहचान गया
ये ही जग से जग की नैया पार लगाता है...
उसे खबर थी इस बात की पहले कि राम ही भाग्यविधाता है...


रावण ने सोचा...

मेरे पाप की लंबी है पंक्ति अब मेरा कैसे उद्धार होगा...
अब तो यह तब संभव है जब विधाता के हाथों मेरा संहार होगा...

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© Satish Sonone