...

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करीब हो मगर
तुम करीब हो मगर, मेरे पास क्यों नहीं?
तुम मोहब्बत हो मगर, ये अपनापन क्यों नहीं?
तुम दिलबर हो मगर, होती दिल की बातें क्यों नहीं?
तुम खुदा हो मगर, मुझे ऐतबार क्यों नहीं?
तुम खुश हो मगर, मुझे सुकूं क्यों नहीं?
इन्हीं सवालों में उलझी हुई हूं मैं
कहीं तुझे और खुद को, धोखा तो नहीं दे रही हूं मैं?