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कि बच्चे अब बड़े हो गए हैं...
बच्चे अब बड़े हो गए है"
परिंदे अब उड़ान को तैयार है,
वे अपने हिससे की आसमां में ,
अस्तित्व की तलाश में -
निशां अपने बनाने को बेताब है..
घोसलों में ना जानें अब फिर -
कब आना हो इनका की अब
ये घोंसले हो रहे विरान हैं..
याद आता है पुनः अब वो मांझी -
जब हम अपनी शाख से हुए थे अलग,
थे खुश.. की हमने पा लिया था कुछ..
की आज दर्द शाख का हो रहा अहसास है,
तब हम भी उड़ चले थे आसमां में यु ही..
छोड़ अपने नीड़ को, थे प्रफुल्लित हम भी,
की उस शाख की पीड़ा से अंजान थे..
जो ख़ुश भी था.. उदास भी..
कि वीरान आशियां उसका होने को हुआ था,
न जाने फिर अब कब हो आबाद,
ये आशियाँ मेरा.. की अब परिंदों तुम्हारा इंतेज़ार है..
© दी कु पा
परिंदे अब उड़ान को तैयार है,
वे अपने हिससे की आसमां में ,
अस्तित्व की तलाश में -
निशां अपने बनाने को बेताब है..
घोसलों में ना जानें अब फिर -
कब आना हो इनका की अब
ये घोंसले हो रहे विरान हैं..
याद आता है पुनः अब वो मांझी -
जब हम अपनी शाख से हुए थे अलग,
थे खुश.. की हमने पा लिया था कुछ..
की आज दर्द शाख का हो रहा अहसास है,
तब हम भी उड़ चले थे आसमां में यु ही..
छोड़ अपने नीड़ को, थे प्रफुल्लित हम भी,
की उस शाख की पीड़ा से अंजान थे..
जो ख़ुश भी था.. उदास भी..
कि वीरान आशियां उसका होने को हुआ था,
न जाने फिर अब कब हो आबाद,
ये आशियाँ मेरा.. की अब परिंदों तुम्हारा इंतेज़ार है..
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