घाव
न कुरोदो उन जख्मों को जिनको हमने दिल में कही छुपायें रखा हैं,
उन ज़ख़्मों के घावों को आँसुओं की मोटी चादर से ढका रखा हैं।
तस्वीरों, यादों सब को दिल के तहखाने में बंद रखा हैं,
ना जानें कब से उस तहखाने के भार को जहन में छुपायें रखा हैं,
उस तहखाने की चाबी को आँखों के नीचे छुपाके रखा हैं।
मुलाकातों में अब पहली जैसी बातें नहीं होतीं,
उनके हर बातों का जबाव अब हमारी बातें नहीं होतीं,
हमारे बीच की बातों की जगह खालीपन को मिला हैं,
कहने को तो वो अब भी दिल के करीबी हैं,
पर फिर ना जाने क्यों अब दिल के करीब वाली बातें नहीं होतीं,
उनकी बातों का जबाव अब आँखों की मुस्कुराहट देती है,
अब दिल की खामोशी उन्हें खुद से दूर रहने की हिदायतें देती हैं।
बिखर के समेटें हैं खुद को आज ही,
ना जाने ये जिंदगी फिर उनका आयना दिखा देती हैं,
कहनें को तो ठीक हैं बाहर से,
पर कुछ आईनें के काँच आज भी उन घावों को कुरेद रहें हैं,
वो खून दिखाई नहीं देता हैं जो उन आयनों के घावों ने दिया हैं,
पर दिन ब दिन ये घाव और गहरे होते जा रहें हैं।
ताश के पत्तों की तरह खुद की जिंदगी बिखरते देखीं हैं,
दिल और दिमाग की जंग लड़ती देखीं हैं,
उनकी मुस्कुराहटों का खंजर बनते देखा हैं मैनें,
और उसी खंजर से खुद को रोज मरते देखा है मैनें।
© shivika chaudhary
उन ज़ख़्मों के घावों को आँसुओं की मोटी चादर से ढका रखा हैं।
तस्वीरों, यादों सब को दिल के तहखाने में बंद रखा हैं,
ना जानें कब से उस तहखाने के भार को जहन में छुपायें रखा हैं,
उस तहखाने की चाबी को आँखों के नीचे छुपाके रखा हैं।
मुलाकातों में अब पहली जैसी बातें नहीं होतीं,
उनके हर बातों का जबाव अब हमारी बातें नहीं होतीं,
हमारे बीच की बातों की जगह खालीपन को मिला हैं,
कहने को तो वो अब भी दिल के करीबी हैं,
पर फिर ना जाने क्यों अब दिल के करीब वाली बातें नहीं होतीं,
उनकी बातों का जबाव अब आँखों की मुस्कुराहट देती है,
अब दिल की खामोशी उन्हें खुद से दूर रहने की हिदायतें देती हैं।
बिखर के समेटें हैं खुद को आज ही,
ना जाने ये जिंदगी फिर उनका आयना दिखा देती हैं,
कहनें को तो ठीक हैं बाहर से,
पर कुछ आईनें के काँच आज भी उन घावों को कुरेद रहें हैं,
वो खून दिखाई नहीं देता हैं जो उन आयनों के घावों ने दिया हैं,
पर दिन ब दिन ये घाव और गहरे होते जा रहें हैं।
ताश के पत्तों की तरह खुद की जिंदगी बिखरते देखीं हैं,
दिल और दिमाग की जंग लड़ती देखीं हैं,
उनकी मुस्कुराहटों का खंजर बनते देखा हैं मैनें,
और उसी खंजर से खुद को रोज मरते देखा है मैनें।
© shivika chaudhary