...

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चाहता हूं मैं चांद बन
चाहता हूं मैं चांद बन
बादलों में छिप जाऊं
उसे निहारूं
और उसे जल्दी नजर ना आऊं
चाहता हूं मैं,,,,,,,,,,

हो परेशान वह
ऐसा उसमें प्यार कि प्यास जगाऊं
टूटकर मिलने आ जाए
उसे ऐसे मोहब्बत कि लौ पढ़ाऊं
चाहता हूं मैं,,,,,,,,,,

इत्र की तरह उसके मस्तिष्क पर
मैं राज कर जाऊं
वह खुद को भूल जाए
और उसे मैं और मैं नजर आऊं
चाहता हूं मैं,,,,,,,,,,

महकाऊं उसकी बगिया को
ऐसा कुछ कर जाऊं
नैनों में बस उसकी
सुरमा सज जाऊं
चाहता हूं मैं,,,,,,,,,,

वह देखें किसी को
तो मैं नजर आऊं
सुबह शाम पूजा की थाली में
उसकी मैं सज जाऊं
चाहता हूं मैं,,,,,,,,,,

गहरे पानी में उतारू उसे
कि उतार न पाऊं
ऐसे करूं प्यार उससे
कि मैं उसमें डुबू-२ , डुबते जाऊं
चाहता हूं मैं,,,,,,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar