...

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चिड़िया
चिड़िया!
क्या तुम चिंतित हो?
क्या तुमने खुद से कभी पूछा है कि तुम क्यूँ चिंतित हो?
किसकी खातिर चिंतित हो?
किसकी वजह से चिंतित हो?
क्या तुम समाज से चिंतित हो?
क्या तुम अपने नाम से चिंतित हो?
क्या तुम्हें पता है कि चिंता क्यूँ बनी?, चिंता किसने बनाई?
उसके कारण को क्या तुमने कभी सोचा है?
अपने मस्तिस्क को क्या तुमने कभी देखा है?
जिसमें खान है हीरों की
जो तुम्हारी सबसे बड़ी संपत्ति है
जिस पर केवल और केवल तुम्हारा हक है
किसी दूसरे का उस पर कोई हक नहीं ,
ना तो समाज का, ना परिवार का और ना ही तुम्हारे मित्र या किसी यार का,
वह तुम्हारा है और केवल तुम ही उसके स्वामी हो
इसलिए उसमें किस तरह के विचार रहेंगे, कौन से विचार को पालना है, और किसको हटाना है,
उसका निर्णय सिर्फ तुम्हारे पास है,
तुमने ऐसा कभी सोचा है, कि मस्तिस्क तुम्हारा है और तुम सोच किसी दूसरे को रहे हो? जबकि वह उस लायक नहीं तब भी,
ये तो वही बात हुई, कि खेत तुम्हारा और उसमें खेती कोई और कर रहा है!
तुम अपने इस हीरे से भरे खेत पर किसी दूसरे को कैसे खेती करने दे सकते हो?
क्या तुम अपने ही अंदर दफ़न हो गये हो?
गर ऐसा है तो तुम भ्रम में हो
तुम्हें भरमाया गया है चंद लोगों के विचारों से
जबकि तुम तुम हो, खुद को पहचान लो
इन चिंताओं को मार कर भगा दो
फिर तुम्हारी वाणी से प्रकाश निकलेगा
चेहरा तुम्हारा औदात्य से चमकेगा
और तुम अपने इस जीवन में
अपने विचार के अनुसार जी पाओगे
यूँ उधार विचार लेकर कब तक जिओगे भला!?
जीवन एक ही है, ये तो याद है न तुम्हें?
मृत्यु के बाद फिर नहीं आना है यहाँ,
तुम्हें पुनर्जन्म का तो लालच नही है?
गर है तो वह एक भ्रम है, एक ढकोसला है,
इसलिए जीवन सिर्फ एक ही है जिसमें जीना भी है और सीखना भी है
तो दबाव किस बात की लेना!
सारे दबाव धरे के धरे रह जायेंगे गर एक बार मृत्यु आई तो;
तब उस वक्त मृत्यु के पल शायद तुम्हें ख्याल आये कि एक अच्छे जीवन को मैंने कैसे नर्क बनाकर जिया छि:!