एक अजन्मी बच्ची का दर्द (भ्रूण हत्या विशेष कविता) ....
आखिर क्या कसूर है मेरा , माँ !
जो तुम मुझे अपने कोख में ही मारने की सोच रही हो,
आखिर क्यों, आखिर क्यों माँ!
इस संसार में आने से तुम मुझे रोक रही हो।
आखिर तुम्हारी ऐसी क्या मजबूरी है माँ!
जो भ्रूण हत्या करना जरूरी है,
आखिर किस बात की हमें सजा देने के लिए
तूने अपने ममत्व को दी मंजूरी है ।
क्या तुझे मुझसे प्यार नहीं है?
या फिर तुझे खुद पर इतवार नहीं है।
क्या तुम खुद ही नहीं चाहती, मैं जन्म लूं
हसूं - मुस्कुराऊँ, खेलूँ - कूदुं, पढ़ूँ - लिखूँ और अपनी एक पहचान बनाऊँ।
क्या तुम नहीं चाहती, मैं अपनी कामयाबियों का परचम लहरा तेरा सिर गर्व से ऊंचा उठाऊँ।
आखिर क्यों, अपनों की खुशियों के खातिर पूरे जमाने से लड़नेवाली ,...
जो तुम मुझे अपने कोख में ही मारने की सोच रही हो,
आखिर क्यों, आखिर क्यों माँ!
इस संसार में आने से तुम मुझे रोक रही हो।
आखिर तुम्हारी ऐसी क्या मजबूरी है माँ!
जो भ्रूण हत्या करना जरूरी है,
आखिर किस बात की हमें सजा देने के लिए
तूने अपने ममत्व को दी मंजूरी है ।
क्या तुझे मुझसे प्यार नहीं है?
या फिर तुझे खुद पर इतवार नहीं है।
क्या तुम खुद ही नहीं चाहती, मैं जन्म लूं
हसूं - मुस्कुराऊँ, खेलूँ - कूदुं, पढ़ूँ - लिखूँ और अपनी एक पहचान बनाऊँ।
क्या तुम नहीं चाहती, मैं अपनी कामयाबियों का परचम लहरा तेरा सिर गर्व से ऊंचा उठाऊँ।
आखिर क्यों, अपनों की खुशियों के खातिर पूरे जमाने से लड़नेवाली ,...