...

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देख रहा है ना बिनोद
देख रहा है ना बिनोद ऐ तू देख रहा है ना बिनोद
सब खुल्लम-खुल्ला हो रहा ना कोई कहीं विरोध...

ना कोई कहीं विरोध, बिक रहा झूठ सब जगह
किसे छुपाऊं किसे बताऊं मची है लूट सब जगह...

मची है लूट सब जगह ये फंदा सा कसता जाता
इस महंगाई, बेकारी, से गरीब ही फंसता जाता...

गरीब ही फंसता जाता, जेब पर बोझ है भारी
अब कैसे कैसे ख़र्च चलाएं, हाय कैसी लाचारी...

हाय कैसी लाचारी, अब नेता सब मौज ले रहे
धूल झोंक कर आंखों में, ये धोखा रोज दे रहे...

ये धोखा रोज दे रहे, कुर्सी को कैसे भी पाऊं
अब जो पद पर बैठा है, कैसे भी उसे गिराऊं...

कैसे भी उसे गिराऊं, हो पैंतरा सच्चा या झूठा
कुर्सी वाला बोल रहा, मैं बैठूंगा गाढ़ के खूँटा...

बैठूंगा गाढ़ के खूँटा न कुर्सी किसी हाल में छोड़ूं
मारूं, काटूं, जेल भेजूं, किसी की खाल निचोड़ूं...

किसी की खाल निचोड़ूं, ये कुर्सी तो बापौती है
जब तक सत्तासीन रहे, तभी तक जय होती है...

तभी तक जय होती है, सो करते रहो अवरोध
तुझसे कुछ ना बिगड़ेगा, तू देखता रह बिनोद...

तू देखता रह बिनोद और आगे भी बस देखेगा
ये मिलके मलाई खाएंगे, और तू आंखें सेकेगा...
© Naveen Saraswat